ब्राह्मणवाद एवं जातिवाद से हटकर गरीबों के मसीहा कमांडो अरुण गौतम।
जब तक सूरज के हत्यारों को सजा नहीं मिलती कमांडो चुप नहीं बैठेगा ये है कमांडो का संकल्प l
हत्यारे ने बुझा दिया मोहन लाल मिश्रा का इकलौता चिराग इस दुनिया से डूबा दिया 27 वर्षीय सूरज दिल दहला देने वाली इस घटना से जन जन में आक्रोष है जनता का कहना है की जाति चाहे कोई हो धर्म चाहे जो हो जब जब किसी के ऊपर अत्याचार और अन्याय हुआ है तब तब ये ब्राह्मण कुल में जन्मे ब्राह्मण शेर कमांडो अरुण गौतम ने जम कर मुक़ावला किया है l ऐसी घटना किसी भी जाति धर्म के गरीबों के साथ होगा तो ये त्यौंथर का शेर चुप नहीं बैठेगा।
अरुण गौतम: एक अकेली आवाज़ जो सूरज के लिए उठी।
सीधी जिले के रिमारी गांव में ब्राह्मण युवक सूरज की हत्या ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया। लेकिन इस दर्दनाक घटना के बाद जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात सामने आई, वह थी—सन्नाटा। सन्नाटा नेताओं का, सन्नाटा जनप्रतिनिधियों का, और सन्नाटा उन लोगों का जो खुद को ब्राह्मण समाज के ठेकेदार कहते हैं।
जब सूरज की हत्या हुई, तब न कोई विधायक आया, न कोई मंत्री, न कोई क्षेत्रीय नेता। न रीति पाठक, न अजय सिंह राहुल, और न ही प्रदेश के मुखिया। लेकिन एक नाम था जो इस सन्नाटे को चीरता हुआ सामने आया—कमांडो अरुण गौतम।
अरुण गौतम सिर्फ एक कमांडो नहीं हैं। वह एक संवेदनशील नागरिक हैं, जिनके भीतर न जाति की दीवार है, न किसी बात का घमंड। सूरज की हत्या की खबर मिलते ही उन्होंने न केवल घटना स्थल पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया, बल्कि तत्काल रामपुर नैकिन थाने में शिकायत दर्ज कराई। यह कदम सिर्फ कानूनी नहीं था, यह एक सामाजिक संदेश था—कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना हर नागरिक का धर्म है।
यह विडंबना ही है कि जब बात ब्राह्मण समाज की आती है, तो कुछ लोग खुद को "ब्राह्मण शिरोमणि" कहने में नहीं हिचकिचाते। लेकिन जब सूरज जैसे युवक की हत्या होती है, तब वही लोग कुंभकर्ण की नीद सोते रहते हैं। राजेंद्र शुक्ला जैसे वरिष्ठ नेता, जो ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि माने जाते हैं, घटना स्थल पर नहीं पहुंचे। सवाल यह है—क्या ब्राह्मणत्व सिर्फ मंचों पर भाषण देने तक सीमित रह गया है?
अरुण गौतम ने दिखा दिया कि ब्राह्मणत्व का मतलब है—सत्य के लिए खड़ा होना, अन्याय के खिलाफ लड़ना, और गरीबों के लिए आवाज़ उठाना। उन्होंने जाति से ऊपर उठकर इंसानियत को प्राथमिकता दी।
सीधी की जनता आज सवाल कर रही है—जब सूरज की हत्या हुई, तब हमारे नेता कहाँ थे? रीति पाठक, जो खुद ब्राह्मण समाज से आती हैं, क्यों नहीं पहुंचीं? अजय सिंह राहुल, जो सीधी के "करता-धर्ता" माने जाते हैं, क्यों चुप रहे? और प्रदेश के मुखिया, जिनसे न्याय की उम्मीद थी, उन्होंने इस घटना को नजरअंदाज क्यों किया?
जनता यह भी कह रही है कि क्या यह चुप्पी जातिवाद नहीं है? क्या सूरज की हत्या पर प्रतिक्रिया न देना, एक वर्ग विशेष की उपेक्षा नहीं है?
अरुण गौतम की पहचान सिर्फ एक ब्राह्मण युवक के लिए आवाज़ उठाने तक सीमित नहीं है। वह हर उस व्यक्ति के लिए खड़े होते हैं जो अन्याय का शिकार होता है। उनकी संवेदना गरीबों के लिए है, वंचितों के लिए है, और उन लोगों के लिए है जिनकी आवाज़ अक्सर दबा दी जाती है।
उनका साहस, उनकी तत्परता और उनका सामाजिक दृष्टिकोण उन्हें एक मसीहा बनाता है—एक ऐसा मसीहा जो न तो पद का भूखा है, न प्रचार का। वह सिर्फ न्याय चाहता है।
और अगर सही मायनों में कहूं तो त्यौंथर क्षेत्र को एक ऐसे ही जनसेवक की जरूरत है जो पूंजीपतियों और रसूखदारों का नहीं गरीबों का सुने, गरीबों के हक के लिए लड़े।
कमांडो अरुण गौतम का कहना है कि त्यौंथर क्षेत्र के गरीब लोगों को लिए एक मसीहा बनकर उभरे है लेकिन उनका समर्थन सोशल मीडिया में ज्यादा इसलिए नहीं दिखता क्योंकि गरीब लोग सोशल मीडिया का उपयोग न के बराबर करते है लेकिन क्षेत्र के गरीब और बेसहारा लोग ही कहते है जब भगवान भी नहीं सुनता हमारी विनती तो सिर्फ एक आदमी है जो आधी रात को हमारी आवाज सुनता है और मदद के लिए दौड़ा चला आता है।
वो है कमांडो अरुण गौतम।











